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घने जंगल के बीच तंबू में सिमट कर रह गई बाढ़ प्रभावितों की जिंदगी पूरी और अचार के सहारे समय काटने को मजबूर हैं लोग

घने जंगल के बीच तंबू में सिमट कर रह गई बाढ़ प्रभावितों की जिंदगी


पूरी और अचार के सहारे समय काटने को मजबूर हैं लोग

हरदा। नर्मदा नदी में आई बाढ़ से दर्जनों ग्रामों के सैकड़ों लोगों के बसे बताए घर उजड़ गये। नर्मदा नदी की बाढ़ अपने साथ सब कुछ बहाकर ले गई। आधी रात को किसी तरह अपनी जान तो बचा ली, मगर अब जिंदगी जीने के लिए कोई सहारा नहीं बचा है। 30 - 31 अगस्त की दरमियानी रात पानी बढ़ता देख लोग अपने हाथ में जो भी जरूरत का सामान आया वह लेकर घर से निकल गए। जान बचाने के लिए गांव से दूर घने जंगल में ऊंचे स्थान पर समय काटने लगे। नदी का पानी कम होने के बाद जब वापस लौटे तो मंजर देख कर उन्हें अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था। उनके घर पूरी तरह से जमीदोज हो चुके थे। यह लोग जंगल में पन्नी तान कर रहने को मजबूर हैं। वन विभाग की तरफ से दी जा रही पूरी ओर अचार खा कर किसी तरह यह प्रभावित लोग अपना समय काट रहे हैं।

◆ 50 से अधिक घर तबाह -

यह बर्बादी हरदा जिले की हंडिया तहसील के ग्राम जोगा की है। यहां पर 50 से अधिक घर पूरी तरह से तबाह हो चुके हैं। तत्कालिक तौर पर वन विभाग ने इन लोगों को रहने के लिए त्रिपाल और पन्निया उपलब्ध कराते हुए गांव से दूर जंगल में सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया। वन ग्राम होने के कारण वन विभाग द्वारा इन प्रभावित लोगों को दोनों समय भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है। परंतु जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई असंभव है। ग्राम की क्षमा बाई का कहना है कि आधी रात में जो कुछ हाथ में आया वह हम लेकर घर से निकल गए थे। बाद में जब पानी उतरा तो कुछ भी नहीं बचा, सब कुछ बर्बाद हो गया। इसी प्रकार ग्राम के राकेश, रवि, मुकेश, गायत्री बाई, जियालाल, शांतिलाल, संतोष ने भी अपनी यही व्यथा सुनाई। वन विभाग की जिस जगह पर फिलहाल यह लोग रह रहे हैं वहां न तो पीने के पानी की व्यवस्था है और ना ही लाइट की। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह लोग जंगल में किस तरह रह रहे होंगे। 

◆ अनेक लोगों को नहीं मिले पट्टे -

1 ग्राम जोगा में अधिकांश लोगों को पट्टे नहीं मिल पाए हैं। जानकारी के अनुसार यहां पर केवल जो आदिवासी परिवार निवासरत हैं केवल उन्हें ही पट्टे दिए गए हैं। शेष परिवार पट्टे से वंचित हैं। सरपंच जयप्रकाश सरस्वाल का कहना है कि पूर्व में अधिकांश परिवारों द्वारा पट्टे के संबंध में आवेदन दिया जा चुका है परंतु वन विभाग की ओर से अभी इस दिशा में कार्यवाही नहीं की गई है।

 ◆ आंखों में भर गया आंसुओं का सैलाब -

कुछ इसी तरह के हाल हंडिया, गोंदागांव गंगेश्वरी, लछोरा, शमशाबाद, जलोदा, छीपानेर, सूरजना, गोयत, मनोहरपूरा आदि ग्राम के भी हैं। इन ग्रामों के लोगों का अनाज, कपड़े, बर्तन सब कुछ पानी ने बर्बाद कर दिया। बसी बसाई ग्रहस्थी को फिर से बनाना बेहद दुष्कर साबित होगा। हंडिया के काला वंशकार सुनीता मोरे  का कहना है कि 4 दिन बाद भी कोई  अधिकारी कर्मचारी देखने तक नहीं आया। घर के भीतर आज भी पानी भरा हुआ है। किसी तरह धर्मशाला में अपना समय गुजार रहे हैं। मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद भी अभी तक खाने के लिए अनाज नहीं दिया गया।

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