हरदा ओर अनूपपुर जिले के तीन अफसरों पर 25-25 हजार जुर्माना - राज्य सूचना आयुक्त सर्विस बुक में दर्ज करने के आदेश
हरदा ओर अनूपपुर जिले के तीन अफसरों पर 25-25 हजार जुर्माना - राज्य सूचना आयुक्त
सर्विस बुक में दर्ज करने के आदेश
केस-1
31 वें दिन आवेदन का जवाब दिया
छह माह बाद शुल्क का पत्र भेजा
हरदा के गोविंद सकतपुरिया ने ग्रामीण यांत्रिकी सेवा विभाग की कार्यपालन यंत्री प्रियंका मेहरा के कार्यकाल से संबंधित चार बिंदुओं की जानकारी मांगी थी। प्रियंका मेहरा लोक सूचना अधिकारी भी थीं। उन्हाेंने 31 वें दिन एक साधारण सा जवाब भेजा कि और समय लगेगा। लेकिन कोई जानकारी दी नहीं। छह महीने बाद आवेदक को दस्तावेजों की शुल्क का पत्र भेजा गया। आयोग के अनुसार यह कानून का मनमाना पालन है, क्योंकि यह कार्रवाई लोक सूचना अधिकारी को 30 दिन की समय सीमा में ही करनी थी। इससे जाहिर है कि अधिकारी को सूचना के अधिकार कानून में अपनी स्पष्ट भूमिका का ही पता नहीं है। आयोग ने सुनवाई के बाद पाया कि अनावश्यक रूप से केस को जानबूझकर लटकाया गया। लोक सूचना अधिकारी की रुचि जानकारी देने की बजाए समय काटने की थी। आयोग ने एकमुश्त विस्तृत जानकारी एक ही आवेदन में मांगने के लिए आवेदक को भी लताड़ लगाई है।
केस-2
30 दिन में जानकारी भी नहीं दी,
आयोग को जवाब की खानापूर्ति
अनूपपुर के अजय पांडे ने शिक्षा विभाग में तीन बिंदुओं में जानकारी चाही थी, जो पूर्व में की गई किसी शिकायत पर हुई कार्रवाई के दस्तावेजों से संबंधित थी। तत्कालीन लोक सूचना अधिकारी उदित कुमार बघेल ने भी 30 दिन की समय सीमा में इस प्रकरण पर कोई निर्णय नहीं लिया। उन्हें जुर्माने के नोटिस पर वीडियोकॉल पर सुनवाई का अवसर दिया गया, लेकिन वे संतोषजनक जवाब नहीं दे सके। उन्होंने मूल प्रकरण में अपनी भूमिका पर कोई जवाब नहीं दिया और किसी लिपिक के माध्यम से मेल पर जवाब की कागजी खानापूर्ति कर दी। आयोग ने इसे गैर जिम्मेदाराना कहा और 25 हजार रुपए का जुर्माना ठोका।
केस-3
योजना प्रभारी ने आरटीआई का
मूल आवेदन ही दबा दिया था
हरदा के लोकेश तिवारी ने नगर पालिका में प्रधानमंत्री आवास योजना से संबंधित जानकारी मांगी थी। प्रथम अपील अधिकारी ने निशुल्क जानकारी देने के आदेश दिए थे। लोक सूचना अधिकारी ने सुनवाई में बताया कि यह मूल आवेदन ही उनके पास तक नहीं आया। जानकारी प्रधानमंत्री आवास योजना से संबंधित थी और आलोक शुक्ला इसके प्रभारी हैं। उन्होंने न मूल आवेदन भेजा और प्रथम अपील के आदेश का पालन भी नहीं किया। आयोग ने सम लोक सूचना अधिकारी बनाकर आलोक शुक्ला काे जवाब तलब किया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री आवास योजना की 4-5 हजार फाइलें थीं इसलिए वे जवाब नहीं दे पाए। आयोग ने इसे गंभीरता से लिया और कहा कि अगर इतनी विस्तृत जानकारी थी तो दस्तावेजों की गणना करके अावेदक को सशुल्क दी जा सकती थी, लेकिन मूल आवेदन ही लोक सूचना अधिकारी के पास नहीं पहंुचाया गया और प्रथम अपील आदेश के बावजूद कान पर जूं नहीं रेंगी। इससे जानकारी छुपाने की मंशा ही सामने आती है। आलोक शुक्ला को भी 25 हजार रुपए जुर्माने के आदेश दिए गए।
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