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नरवाई न जलाने हेतु प्रतिबंधात्‍मक आदेश जारी

नरवाई न जलाने हेतु प्रतिबंधात्‍मक आदेश जारी


हरदा - कलेक्‍टर एवं जिला दंडाधिकारी श्री संजय गुप्‍ता ने दण्‍ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 144 के अंतर्गत जन सामान्‍य को बाधा, क्षति, मानव जीवन स्‍वास्‍थ्‍य, क्षेम के खतरे के प्रभाव को दृष्टिगत रखते हुए, हरदा जिले की भौगोलिक सीमाओं में खेत में खड़े गेहूँ के डंठलों (नरवाई) एवं फसल अवशेषों में आग लगायी जाने पर प्रतिबंध लगाया है। यह आदेश जारी दिनांक से 3 माह तक की अवधि के लिये प्रभावशील रहेगा।

कलेक्‍टर श्री गुप्‍ता ने बताया कि नरवाई में आग लगाने के कारण विगत वर्षो में गंभीर स्‍वरूप की अग्नि दुर्घटनाएं घटित हुई है, जिसके कारण मकानों में आग लगने से, समीप के खेतों में खड़ी फसल भी आग के कारण जलकर नष्‍ट हुई है, जिस कारण जन, धन एवं पशु हानि हुई है। साथ ही प्रशासन के लिये कानूनी व्‍यवस्‍थापन की स्थिति निर्मित हुई है। आग से उत्‍सर्जित होने वाली हानिकारक गैसों के कारण वायु मण्‍डल एवं पर्यावरण प्रदूतिषत हुआ है, जिस कारण वायु मण्‍डल में विद्यमान ओजोन परत भी प्रभावित हुई है। इस कारण पराबैंगनी हानिकारक किरणें पृथ्‍वी तक पहुँचती है, जो कि मानव, पशुओं के लिये रोग जन्‍य होती है। 

मध्‍यप्रदेश शासन पर्यावरण विभाग द्वारा 15 मई 2017 द्वारा वायु अधिनियम 1981 की धारा 19 (1) के अंतर्गत जारी अधिसूचना 09 मार्च 1988 के माध्‍यम से कर वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम 1981 के प्रावधानों के अनुपालन हेतु सम्‍पूर्ण मध्‍यप्रदेश को वायु प्रदूषण नियंत्रण हेतु अधि‍सूचित किया गया है। मध्‍यप्रदेश में वायु अधिनियम 1981 की धारा 19 (5) के तहत नरवाई जलाना तत्‍समय से तत्‍काल प्रतिबंधित किया गया है, जो कि वर्तमान निरन्‍तर जारी है।

पर्यावरण विभाग द्वारा अधिसूचना अंतर्गत नरवाई में आग लगाने वालों के विरूद्ध पर्यावरण क्षतिपूर्ति हेतु दण्‍ड का प्रावधान किया गया है।  इसके तहत 2 एकड़ तक के कृषकों को रूपये 2500 का अर्थदण्‍ड प्रति घटना, 2 से 5 एकड़ तक के कृषकों को रूपये 5000 का अर्थदण्‍ड प्रति घटना तथा 5 एकड़ से बड़े कृषकों को रूपये 15 हजार का अर्थदण्‍ड प्रति घटना निर्धारित है।

नरवाई जलाने से भूमि की उर्वरता एवं उत्‍पादकता होती है प्रभावित

कलेक्‍टर श्री गुप्‍ता ने बताया कि नरवाई जलाने से भूमि की उर्वरता एवं उत्‍पादकता प्रभावित होती है/ खेत में आग लगने से खेत के माइक्रोफ्लोरा एवं माइक्रोफोना नष्‍ट हो जाते है। मृदा एक जीवित माध्‍यम है क्‍योकि इसमें असंख्‍य सूक्ष्‍म जीव यथा - बैक्टिरिया, फंगस, सहजीविता निर्वहन करने वाले सूक्ष्‍म लाभदायक जीवाणु नष्‍ट हो जाते है, जो कि भूमि की उर्वरता एवं उत्‍पादकता में सहायक होते है। नरवाई जलाने से खेत की उर्वरता में लगातार गिरावट आ रही हे, जिससे फसल उत्‍पादन पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। खेतों में विद्यमान नरवाई एवं फसल अवशेष, मृदा में विद्यमान माइक्रोफ्लोरा द्वारा अपघटित होकर जैविक खाद में परिवर्तित हो जाते है, जो कि मृदा से ह्यूमस में वृद्धि करते है और इस प्रकार मृदा की उर्वरता एवं उत्‍पादकता निरन्‍तर बनी रहती हे, जबकि आग लगाने से इस लाभ में मृदा वंचित रह जाती है। नरवाई जलाने से भूमि की जल भरण क्षमता एवं बोये गये बीज की अंकुरण क्षमता भी प्रभावित होती है। नरवाई जलाने से भूमि की लवण सांध्रता प्रभावित होती है, जो कि पौधों द्वारा पोषक तत्‍वों के अवशोषण की दर निर्धारित करती है।

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