तहसील से अलग अविवादित प्रकरणों के लिए खुल सकते हैं राजस्व न्यायालय
तहसील से अलग अविवादित प्रकरणों के लिए खुल सकते हैं राजस्व न्यायालय
तहसीलों की पेंडेंंसी खत्म करने, भूमि सुधार आयोग ने दिए सुझाव
भूमि सुधार आयोग द्वारा सरकार को दिए सुझाव में कहा गया है कि अविवादित मामलों में आवेदक या पक्षकार के भौतिक रूप से उपस्थिति की आवश्यकता नहीं होती है। इसलिए इस तरह के प्रकरणों कोे निराकृत करने के लिए हर जिले में एक तहसीलदार स्तर के न्यायालय की अलग से व्यवस्था की जाए। आनलाइन और आरसीएमएस पंजीकृत या डाक द्वारा भेजे जाने वाले नामांतरण और बंटवारे के मामले में एक तय समय सीमा के लिए पक्षकारों को सूचना और तामीली जारी की जाए और अगर तय अवधि तक कोई आपत्ति नहीं आती है तो उसे अविवादित मानते हुए उसका निराकरण किया जाए।
आयोग के अनुसार अगर ऐसा राजस्व न्यायालय खोलने पर सरकार सहमत हो तो इसे जिला मुख्यालय स्तर पर ही संचालित किया जाए जिसमें जिले के सभी अविवादित मामलों को शामिल किया जा सके। अगर किसी को अविवादित रूप में प्रस्तुत किए गए नामांतरण, बंटवारे के नोटिस में आपत्ति है और आपत्ति आती है तो उसे संबंधित तहसील के न्यायालय में स्थानांतरित किया जा सकेगा। ऐसी व्यवस्था तय होने से बगैर विरोध वाले नामांतरण व बंटवारे के केस का निराकरण आसानी से और जल्दी हो जाएगा। अभी जो स्थिति है, उसके मुताबिक समय पर सुनवाई नहीं होने से अविवादित मामले भी लंबे समय तक पेंडिंग रहते हैं, जिसका असर सरकार और जनता के काम पर पड़ता है।
यह नाम सुझाए गए कोर्ट के लिए
आयोग ने सुझाव में कहा है कि जिला मुख्यालय पर खोले जाने वाले न्यायालय का नाम अलग से तय किया जा सकता है। इसे न्यायालय तहसीलदार अविवादित प्रकरण जिला.... नाम दिया जा सकता है। इस न्यायालय में नायब तहसीलदार या अपर तहसीलदार की पदस्थापना की जा सकेगी। इसके लिए राजस्व अधिनियम की धारा 27 में परंतुक जोड़कर कार्रवाई का अधिकार दिया जा सकता है जिसमें यह कहा जाएगा कि कोई राजस्व अधिकारी किसी मामले की जांच, यदि उसमें सुनवाई के लिए पक्षकारों की भौतिक उपस्थिति आवश्यक नहीं है, जिले के भीतर किसी स्थान पर कर सकेगा। ऐसे न्यायालय में पदस्थ किए जाने वाले अपर तहसीलदार धारा 110, 178 और 178 क की शक्तियों का उपयोग कर सकेंगे।
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