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नर्मदा जयंती पर विशेष : जानिए मॉ नर्मदा का महत्व, कथा, मंत्र, नर्मदा स्तोत्र श्री नर्मदाष्टकम एवं परिक्रमा का रहस्य

नर्मदा जयंती पर विशेष : जानिए मॉ नर्मदा का महत्व, कथा, मंत्र, नर्मदा स्तोत्र श्री नर्मदाष्टकम एवं परिक्रमा का रहस्य

लोकमतचक्र.कॉम।


हरदा/हंडिया : हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार माघ महीने में शुक्ल पक्ष सप्तमी को नर्मदा जयंती प्रतिवर्ष मनाई जाती है। इस दिन भक्त नर्मदा नदी की पूजा करते हैं जो उनके जीवन में शांति और समृद्धि लाती है। मध्य प्रदेश में अमरकंटक, नर्मदा नदी का उद्गम स्थल, नर्मदा जयंती का अवलोकन करने के लिए एक लोकप्रिय स्थान है। नर्मदा जयंती के मौके पर हर साल हजारों भक्त नगर के विभिन्न विभिन्न घाटों पर भजन और देवी के गीत गाते हैं। हर साल शाम को संत और भक्त बनारस के प्रसिद्ध गंगा घाटों पर की जाने वाली आरती की तर्ज पर देवी नर्मदा की भव्य आरती करते हैं। नर्मदा भारत की प्रमुख नदियों में से एक है। इसका वर्णन रामायण, महाभारत आदि अनेक धर्म ग्रंथों में भी मिलता है। धार्मिक ग्रंथों में यह तिथि को नर्मदा जयंती के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त है। नर्मदा जीवनदायिनी मां है। यह पूरी दुनिया की अकेली रहस्यमयी नदी है। चारों वेद इसकी महिमा का गान करते हैं। इस बार मां नर्मदा की जयंती 8 फरवरी 2022, मंगलवार (8 February 2022) को मनाई जा रही है। कहते हैं कि कृपा सागर भगवान शंकर द्वारा अमरकंटक के पर्वत पर 12 वर्ष की कन्या के रूप में नर्मदा को उत्पन्न किया गया।


नर्मदा ने भगवान शिव से वरदान प्राप्त किया था कि 'प्रलय में भी उसका नाश न हो। उसका हर पाषाण शिवलिंग के रूप में बिना प्राण-प्रतिष्ठा के पूजित हो।' 12 ज्योर्तिर्लिंगों में से एक प्रसिद्ध ज्योर्तिर्लिंग ओंकारेश्वर नर्मदा नदी के तट पर ही स्थित है। इसके अलावा भृगुक्षेत्र, शंखोद्वार, धूतताप, कोटीश्वर, ब्रह्मतीर्थ, भास्करतीर्थ, गौतमेश्वर। चंद्र द्वारा तपस्या करने के कारण सोमेश्वर तीर्थ आदि 55 तीर्थ भी नर्मदा के विभिन्न घाटों पर स्थित हैं। वर्तमान समय में तो कई तीर्थ गुप्त रूप में स्थित हैं।

Purano me Narmada पुराणों में नर्मदा- स्कंद पुराण के अनुसार, नर्मदा प्रलय काल में भी स्थायी रहती है एवं मत्स्य पुराण के अनुसार नर्मदा के दर्शन मात्र से पवित्रता आती है। इसकी गणना देश की पांच बड़ी एवं सात पवित्र नदियों में होती है। गंगा, यमुना, सरस्वती एवं नर्मदा को ऋग्वेद, सामवेद, यर्जुवेद एवं अथर्ववेद के सदृश्य समझा जाता है। महर्षि मार्कण्डेय के अनुसार इसके दोनों तटों पर 60 लाख, 60 हजार तीर्थ हैं एवं इसका हर कण भगवान शंकर का रूप है। इसमें स्नान, आचमन करने से पुण्य तो मिलता ही है केवल इसके दर्शन से भी पुण्य लाभ होता है।

नर्मदा अनादिकाल से ही सच्चिदानंदमयी, आनंदमयी और कल्याणमयी नदी रही है। हमारे कई प्राचीन ग्रंथों में नर्मदा के महत्व का वर्णन मिलता है। नर्मदा शब्द ही मंत्र है। नर्मदा कलियुग में अमृत धारा है। नर्मदा के किनारे तपस्वियों की साधना स्थली भी हैं और इसी कारण इसे तपोमयी भी कहा गया है। विष्णु पुराण में वर्णन आता है कि नाग राजाओं ने मिलकर नर्मदा को वरदान दिया है कि जो व्यक्ति तेरे जल का स्मरण करेगा उसे कभी सर्प विष नहीं फैलेगा।

नर्मदा के सभी स्थलों को श्राद्ध के लिए उपयुक्त बतलाया गया है। वायु पुराण में उसे पितरों की पुत्री बताया गया है और इसके तट पर किए गए श्राद्ध का फल अक्षय बताया गया है। नर्मदा पत्थर को भी देवत्व प्रदान करती है और पत्थर के भीतर आत्मा प्रतिष्ठित करती है।

birth story of Maa narmada नर्मदा अवतरण की कथा- एक बार भगवान शिव लोक कल्याण के लिए तपस्या करने मैखल पर्वत पहुंचे। उनके पसीने की बूंदों से इस पर्वत पर एक कुंड का निर्माण हुआ। इसी कुंड में एक बालिका उत्पन्न हुई। जो शांकरी व नर्मदा कहलाई। शिव के आदेशानुसार वह एक नदी के रूप में देश के एक बड़े भू-भाग में रव (आवाज) करती हुई प्रवाहित होने लगी। रव करने के कारण इसका एक नाम रेवा भी प्रसिद्ध हुआ। मैखल पर्वत पर उत्पन्न होने के कारण वह मैखल-सुता भी कहलाई।

एक दूसरी कथा के अनुसार चंद्रवंश के राजा हिरण्यतेजा को पितरों को तर्पण करते हुए यह अहसास हुआ कि उनके पितृ अतृप्त हैं। उन्होंने भगवान शिव की तपस्या की तथा उनसे वरदान स्वरूप नर्मदा को पृथ्वी पर अवतरित करवाया। भगवान शिव ने माघ शुक्ल सप्तमी पर नर्मदा को लोक कल्याणार्थ पृथ्वी पर जल स्वरूप होकर प्रवाहित रहने का आदेश दिया। नर्मदा द्वारा वर मांगने पर भगवान शिव ने नर्मदा के हर पत्थर को शिवलिंग सदृश्य पूजने का आशीर्वाद दिया तथा यह वर भी दिया कि तुम्हारे दर्शन से ही मनुष्य पुण्य को प्राप्त करेगा। इसी दिन को हम नर्मदा जयंती के रूप में मनाते हैं।

अगस्त्य, भृगु, अत्री, भारद्वाज, कौशिक, मार्कण्डेय, शांडिल्य, कपिल आदि ऋषियों ने नर्मदा तट पर तपस्या की है। ओंकारेश्वर में नर्मदा के तट पर ही आदि शंकराचार्य ने शिक्षा पाई और नर्मदाष्टक की रचना की। भगवान शंकर ने स्वयं नर्मदा को दक्षिण की गंगा होने का वरदान दिया था। पुराणों के अनुसार नर्मदा का उद्भव भगवान शंकर से हुआ। तांडव करते हुए शिव के शरीर से पसीना बह निकला। उससे एक बालिका का जन्म हुआ जो नर्मदा कहलाई। शिव ने उसे लोककल्याण के लिए बहते रहने को कहा। कहते हैं कि वैशाख शुक्ल सप्तमी पर नर्मदा में गंगा का वास रहता है।

Narmada ka Safar नर्मदा का सफर- अमरकंटक से प्रकट होकर लगभग 1200 किलोमीटर का सफर तय कर नर्मदा गुजरात के खंभात में अरब सागर में मिलती है। विध्यांचल पर्वत श्रेणी से प्रकट होकर देश के ह्रदय क्षेत्र मध्यप्रदेश में यह प्रवाहित होती है। नर्मदा के जल से मध्य प्रदेश सबसे ज्यादा लाभान्वित है। यह पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है तथा डेल्टा का निर्माण नहीं करती। इसकी कई सहायक नदियां भी हैं।

नर्मदा परिक्रमा का महत्व Narmada Parikarma- नर्मदा ही विश्व की एक मात्र ऐसी नदी है, जिसकी परिक्रमा की जाती है क्योंकि इसके हर घाट पर पवित्रता का वास है तथा इसके घाटों पर महर्षि मार्कण्डेय, अगस्त्य, महर्षि कपिल एवं कई ऋषि-मुनियों ने तपस्या की है। शंकराचार्यों ने भी इसकी महिमा का गुणगान किया है। मान्यता के अनुसार इसके घाट पर ही आदि गुरु शंकराचार्य ने मंडन मिश्र को शास्त्रार्थ में पराजित किया था।

हमारे पुराणों में वर्णन है कि संसार में नर्मदा ही एकमात्र नदी है जिसकी परिक्रमा सिद्ध, नाग, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, मावन आदि करते हैं। माघ शुक्ल सप्तमी पर अमरकंटक से लेकर खंभात की खाड़ी तक नर्मदा के किनारे पड़ने वाले ग्रामों और नगरों में उत्सव रहता है क्योंकि इस दिन नर्मदा जयंती मनाई जाती है। 

मंत्र-Narmada Mantra

 
- नम: पुण्यजलेआद्येनम: सागरगामिनि।
नमोऽस्तुतेऋषिगणै:शंकरदेहनि:सृते।
नमोऽस्तुतेधर्मभृतेवराननेनमोऽस्तुतेदेवगणैकवन्दिते।
नमोऽस्तुतेसर्वपवित्रपावनेनमोऽस्तुतेसर्वजगत्सुपूजिते। 

- पुण्या कनखले गंगा कुरुक्षेत्रे सरस्वती।
ग्रामेवा यदि वारण्ये पुण्या सर्वत्र नर्मदा।
त्रिभि:सारस्वतं पुण्यं सप्ताहेनतुयामुनम्।
सद्य:पुनातिगाङ्गेयंदर्शनादेवनर्मदाम्।

- कनकाभांकच्छपस्थांत्रिनेत्रांबहुभूषणां।
पद्माभय:सुधाकुम्भ:वराद्यान्विभ्रतींकरै:।
 
- ऐं श्रींमेकल-कन्यायैसोमोद्भवायैदेवापगायैनम:।


नर्मदा स्तोत्र - श्री नर्मदाष्टकम
Stotram Narmadashtak

सबिंदु सिन्धु सुस्खल तरंग भंग रंजितम द्विषत्सु पाप जात जात कारि वारि संयुतम कृतान्त दूत काल भुत भीति हारि वर्मदे त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे - 1

त्वदम्बु लीन दीन मीन दिव्य सम्प्रदायकम कलौ मलौघ भारहारि सर्वतीर्थ नायकं सुमस्त्य कच्छ नक्र चक्र चक्रवाक् शर्मदे त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे - 2

महागभीर नीर पुर पापधुत भूतलं ध्वनत समस्त पातकारि दरितापदाचलम जगल्ल्ये महाभये मृकुंडूसूनु हर्म्यदे त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे-3

गतं तदैव में भयं त्वदम्बु वीक्षितम यदा मृकुंडूसूनु शौनका सुरारी सेवी सर्वदा पुनर्भवाब्धि जन्मजं भवाब्धि दुःख वर्मदे त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे-4

अलक्षलक्ष किन्न रामरासुरादी पूजितं सुलक्ष नीर तीर धीर पक्षीलक्ष कुजितम वशिष्ठशिष्ट पिप्पलाद कर्दमादि शर्म त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे-5

सनत्कुमार नाचिकेत कश्यपात्रि षटपदै धृतम स्वकीय मानषेशु नारदादि षटपदैः रविन्दु रन्ति देवदेव राजकर्म शर्मदे त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे - 6

अलक्षलक्ष लक्षपाप लक्ष सार सायुधं ततस्तु जीवजंतु तंतु भुक्तिमुक्ति दायकं विरन्ची विष्णु शंकरं स्वकीयधाम वर्मदे त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे-7

अहोमृतम श्रुवन श्रुतम महेषकेश जातटे किरात सूत वाड़वेषु पण्डिते शठे नटे दुरंत पाप ताप हारि सर्वजंतु शर्मदे त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे - 8

इदन्तु नर्मदाष्टकम त्रिकलामेव ये सदा पठन्ति ते निरंतरम न यान्ति दुर्गतिम का सुलभ्य देव दुर्लभं महेशधाम गौरवम पुनर्भवा नरा न वै त्रिलोकयंती रौरवम-9

त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे नमामि देवी नर्मदे, नमामि देवी नर्मदे त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे |
 

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