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पाप, ताप व संताप को नष्ट करता है सिद्धचक्र महामंडल विधान बोले ब्रह्मचारी तरूण भैय्या

विश्व शांति ओर आत्म कल्याण के लिए बड़जात्या जैन परिवार ने किया श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान का आयोजन

पाप, ताप व संताप को नष्ट करता है सिद्धचक्र महामंडल विधान बोले ब्रह्मचारी तरूण भैय्या

नगर में 10 दिन चलेगा जैन समाज का यह महाआयोजन

लोकमतचक्र.कॉम।

हरदा : जैन धर्म में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले 17 लाख वर्ष प्राचीन श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान का भव्य आयोजन बड़जात्या जैन परिवार द्वारा स्थानीय श्री दिगम्बर जैन धर्मशाला में किया जा रहा है। आयोजन दस दिनों तक चलेगा। आयोजन में सौधर्म इंद्र का सौभाग्य प्रतीक बड़जात्या तथा यज्ञनायक का सौभाग्य अशोक बड़जात्या को प्राप्त हुआ है।


सिद्धचक्र मंडल विधान में ईशान इंद्र का सौभाग्य प्राप्त करने वाले अभय बड़जात्या ने बताया कि परम पूज्य गणाधिपति गणधराचार्य पूज्य आचार्य श्री 108 कुंथु सागर जी महाराज के आशीर्वाद एवं संत शिरोमणी आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज की प्रेरणा से एवं बाल ब्राह्मचारी श्री तरुण भैया (इंदौर) वालों के सानिध्य एवं निर्देशन में सर्व सौख्य प्रदायी “श्री श्री सिद्धचक्र महामण्डल विधान एवं विश्व कल्याण कामना महायज्ञ का आयोजन बड़ी धूम-धाम से दि. 10 मार्च से 19 मार्च 2022 तक किया जा रहा है। जिसमें प्रतिदिन प्रातः काल विश्व शांति एवं कल्याण की भावना को लेकर शांति धारा की जावेगी इसके पश्चात मंडल विधान की पूजन होगी वहीं शाम के समय भव्य आरती का आयोजन और ब्रह्मचारी तरुण भैया के प्रवचन के साथ सांस्कृतिक आयोजन किए जाएंगे। आयोजन के प्रथम दिन जैन श्रावकों ने श्री जी की प्रतिमा मंदिर से धूमधाम और जैनम् दिव्य घोष के साथ नगर के सार्वजनिक स्थान से घट यात्रा के रूप में लेकर स्थानीय जैन धर्मशाला पहुंचे वहां पर श्री जी की स्थापना का आयोजन प्रारंभ किया गया।

उक्त जानकारी देते हुए जैन समाज के अध्यक्ष सुरेन्द्र जैन एवं कोषाध्यक्ष राजीव रपरिया जैन ने बताया कि अतिशय क्षेत्र हरदा में आज 10 मार्च से सिद्धचक्र महामंडल विधान का आयोजन जैन समाज हरदा के सहयोग से पुण्यार्जक बड़जात्या परिवार द्वारा किया जा रहा है। यहां धार्मिक आयोजन धार्मिक अनुष्ठान तरूण भैया इंदौर के सानिध्य में हो रहा है। गणधराचार्य 108 श्री कुंथू सागर जी महाराज तथा संतशिरोमणी आचार्य 108 श्री विद्यासागर जी महाराज के आशिर्वाद से जैन श्रावकों द्वारा जैन धर्मशाला में सिद्धों की आराधना होगी। श्री 1008 सिद्धचक्र महामंडल विधान का आयोजन अष्ठानिका महापर्व में होने जा रहा है। यह अनुष्ठान 10 मार्च से शुरू होकर 19 मार्च तक चलेगा। 


सिद्धचक्र मंडल विधान का यह है महत्व जैन दर्शन में

सिद्धचक्र मंडल विधान के बारे में जानकारी देते हुए विधानाचार्य ब्रह्मचारी तरुण भैया ने बताया कि जैन धर्म में अष्ठानिका का पर्व का विशेष महत्व बताया गया है।  सिद्धचक्र महामंडल विधान में प्रथम दिन 8 अर्घ्य मंडल पर समर्पित की जाते हैं,दूसरे दिन 16 एवं तीसरे दिन 32 चौथे दिन 64 पांचवें दिन 128 छठे दिन 256 सातवें दिन 512 एवं अंतिम दिन 1024 अर्घ्य समर्पित किए जाते है। सिद्धचक्र महामंडल विधान के बारे में आचार्यों ने बतलाया कि सिद्ध शब्द का अर्थ है कृत्य-कृत्य, चक्र का अर्थ है समूह और मंडल का अर्थ एक प्रकार के वृताकार यंत्र से है। इनमें अनेक प्रकार के मंत्र व बीजाक्षरों की स्थापना की जाती है। मंत्र शास्त्र के अनुसार, इसमें अनेक प्रकार की दिव्य शक्तियां प्रकट हो जाती है। सिद्धचक्र महामंडल विधान समस्त सिद्ध समूह की आराधना मंडल की साक्षी में की जाती है। जो हमारे समस्त मनोरथों को पूर्ण करती है।

ब्रह्मचारी तरूण भैय्या ने कहा कि जैन दर्शन में अष्टनिका महापर्व का विशेष महत्त्‌व बतलाया गया है। इस अवसर पर देव लोग भी नंदीश्वर दीप में आकर सिद्ध भगवान की आराधना करते हैं। अष्ठानिका पर्व में स्वर्ग से इंद्रलोक भी मंदिरो में भगवान की भक्ति करने आते है। फाल्गुन, कार्तिक व आषाढ़ के अंतिम आठ दिन अष्टमी से पूर्णिमा तक यह पर्व आता है। इन आठ दिनों में सिद्धों की यह विशेष आराधना के लिए सिद्धचक्र विधान किया जाता है।


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