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किसानों के लिए फ़ायदे की खबर: लोन होगा फटाफट मंजूर, डिस्बर्समेंट भी हो जाएगा कुछ घंटों में

किसानों के लिए फ़ायदे की खबर: लोन होगा फटाफट मंजूर, डिस्बर्समेंट भी हो जाएगा कुछ घंटों में

भोपाल : राजस्व विभाग ने आरबीआई की नई गाइडलाइन के बाद प्रदेश के किसानों को लोन देने की लिए नई व्यवस्था शुरू की है। इसका फायदा यह होगा कि पांच मिनट में उन्हें लोन मंजूर हो जाएगा और तीन दिन बाद उसे किसान को डिस्बर्स कर दिया जाएगा।
किसानो के लिए यह सुविधा रिजर्व बैंक इनोवेशन हब (आरबीआईएच) एवं बैंकर्स के माध्यम से दी जानी है। इसके अंतर्गत बैंक और राजस्व विभाग की सहायता से किसान केंद्रित किसान क्रेडिट कार्ड के एंड-टू-एंड कम्प्यूटरीकरण की पद्धति लागू की गई है। इसका उद्देश्य केसीसी ऋण देने की प्रक्रिया को डिजिटल बनाना है। राजस्व विभाग ने पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर हरदा जिले के 400 से अधिक किसानों के लिए इसका प्रयोग भी कर लिया है।

इस सिस्टम को प्रभावी किए जाने के बाद किसान को क्रेडिट कार्ड पर ऋण लेने के लिए बैंक की शाखा में जाने एवं कोई दस्तावेज जमा करने की आवश्यकता नहीं होगी। आवेदन आनलाइन एप के माध्यम से किया जा सकेगा। चूंकि किसानों की सभी तरह की भूमि की जानकारी राजस्व विभाग के रिकार्ड में मौजूद है, इसलिए बैंक और विभाग के इंटीग्रेशन से कृषि भूमि का सत्यापन आनलाइन हो जाएगा। आवेदन का अनुमोदन शीघ्र हो जाएगा और तीन दिन के बाद केसीसी लोन प्राप्त हो जाएगा।
राजस्व विभाग के भू अभिलेख की वेबजीआईएस साफ्टवेयर में मौजूद  डेटा इस योजना में किसानों, बैंकों और राजस्व अफसरों के लिए मददगार बन रहा है। ट्रायल के तौर पर हरदा में छोटे किसानों को लोन देने के लिए भू अभिलेख विभाग ने वहां यूनियन बैंक आॅफ इंडिया से इंटीग्रेशन किया है। बताया गया कि इस प्रक्रिया में आवेदन करने के बाद आवेदन करने वाले किसान का डेटा जैसे ही बैंक मैनेजर अपने रिकार्ड में डालते हैं, वैसे ही इंटीग्रेशन के लिए राजस्व विभाग के पास सूचना आ जाती है और इसके बाद किसान को भटके और दफ्तरों का चक्कर काटे बिना लोन मंजूर हो जाता है। इसके साथ ही राजस्व विभाग द्वारा किसानों की जमीन के मालिकाना हक के लिए संधारित किए जाने वाले खसरे के कॉलम नम्बर 12 में यह जानकारी दर्ज हो जाती है कि फलां किसान की कितनी एकड़ जमीन पर कितना लोन मंजूर किया जा चुका है।  तहसीलदार और पटवारी के लिए इसमें मामूली जांच के बिन्दु रखे गए हैं पर अगर तीन दिन के भीतर इनके द्वारा संबंधित किसान के आवेदन पर कोई निगेटिव टीप नहीं दर्ज की गई तो इसके बाद आवेदन मंजूरी स्वयमेव मान ली जाती है और किसान को लोन मिल जाता है।

केवाईसी भी बन रही सहायक

बैंकों से लोन के लिए तहसीलदार के दफ्तर के चक्कर काटने के मामले में भी अब किसानों को राहत मिली है। चूंकि बैंकों के साफ्टवेयर और भू अभिलेख संधारण के लिए काम करने वाले वेबजीआईएस साफ्टवेयर को इंटीग्रेट कराया जा चुका है। इसलिए बैंकर्स जब चाहें जिस किसान की जमीन के बारे में जानकारी हासिल कर सकते हैं।

बैंकों को नहीं होना पड़ता परेशान, चेक कर लेते हैं रिकार्ड

इस व्यवस्था के प्रभावी होने के बाद बैंक को यह भी पता चल जाता है कि किसान ने जमीन के कितने हिस्से में लोन किस बैंक से ले रखा है और अतिरिक्त लोन कितनी जमीन पर कितना दिया जा सकता है। ऐसी स्थिति में बैंकर्स को यह जानने में परेशानी नहीं होगी कि किसान ने किसी अन्य बैंक से लोन तो नहीं ले रखा है।

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