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टेंडर में हेरफेर मामला : भ्रष्ट अधिकारी सहित दो को तीन साल की सजा

टेंडर में हेरफेर मामला : भ्रष्ट अधिकारी सहित दो को तीन साल की सजा


लोकमतचक्र डॉट कॉम। 

भोपाल। भोपाल में शराब दुकान के ठेके संबंधी टेंडर के कागजातों में षडयंत्रपूर्वक फेरबदल कर चहेते ठेकेदारों को अनुचित लाभ पहुंचाने के मामले में माननीय मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी ने अभियुक्त तत्कालीन जिला आबकारी अधिकारी विनोद रघुवंशी एवं लिपिक ओपी शर्मा को तीन-तीन की सजा एवं पांच-पांच हजार रुपए के जुर्माने से दंडित किया है। यह परिवाद माननीय न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी के न्यायालय में था, मामले में अधिकतम सजा निर्धारत के लिए प्रकरण माननीय मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी के न्यायालय में भेजा गया था। मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी अमर सिंह सिसोदिया ने आज इस मामले में अभियुक्तगण को तीन-तीन  वर्ष की सजा और पांच-पांच हजार रु. के जुर्माने से दंडित किया है। 

धोखाधड़ी का यह मामला करीब डेढ़ दशक पुराना है। भोपाल में वर्ष 2002-03 में विनोद रघुवंशी जिला आबकारी अधिकारी थे। आबकारी ठेके के लिए एक समूह द्वारा सन 2002 में पार्टनरशिप डीड बनाकर टेंडर के लिए शासन को प्रस्तुत की गई थी। विनोद रघुवंशी द्वारा सन 2003 में इस डीड में अपने स्तर पर बदलाव कर दूसरी डीड रख दी गई और इसमें से समूह के एक पक्षकार का नाम विलोपित कर दिया। इसकी जानकारी उस व्यक्ति को भी नहीं थी, जिसका नाम हटाया गया था।। नई डीड के आधार पर ठेका हो गया और जब नाम विलोपित होने वाले व्यक्ति को इसकी जानकारी मिली तो उसने रघुवंशी के खिलाफ विभाग को शिकायत की। जांच में रघुवंशी दोषी पाए लेकिन इसके बाद भी कार्यवाही नहींं होने पर पर पीडि़त ने बाद में कोर्ट की शरण ली।

भोपाल जिला अदालत के माननीय न्यायिक मजिस्ट्रेट रविकुमार बौरासी ने प्रकरण में पिछले दिनों प्रकरण में अधिकतम सजा निर्धारण के लिए केस को सीजेएम कोर्ट को ट्रांसफर किया गया था। रघुवंशी के विरुद्ध यह केस सोम डिस्टलरी के प्रमोटर अजय अरोरा ने दायर किया था। अरोरा के परिवाद पत्र के मुताबिक वर्ष 2003- 04 के आबकारी ठेका नीलामी में अशोक ट्रेडर्स ने भाग लिया था, जिसमें अरोरा भी पार्टनर थे। लेकिन आबकारी अधिकारी विनोद रघुवंशी ने दस्तावेजों से छेड़छाड़ कर अरोरा का नाम हटा दिया था और कोई दूसरी पार्टनरशिप डीड रख दी थी। इस फर्जीवाड़े के खिलाफ अरोरा ने एफआईआर दर्ज कराने के साथ ही कानूनी कार्यवाही शुरू की थी।

विद्वान न्याधीश ने परिवाद से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर गंभीरतापूर्वक अध्ययन और उभयपक्षीय अधिवक्ताओं की दलीलों को सुनने के बाद आज अभियुक्तगण को तीन-तीन वर्ष की सजा और पांच-पांच हजार रु. के अर्थदंड की सजा सुनाई।

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