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जैन समाज ने मनाया भगवान श्री 1008 शांतिनाथ का जन्म, तप एवं मोक्ष कल्याणक महोत्सव...

जैन समाज ने मनाया भगवान श्री 1008 शांतिनाथ का जन्म, तप एवं मोक्ष कल्याणक महोत्सव...

कोविड गाइडलाइन के चलते प्रत्येक वेदी पर दो-दो सदस्यों की उपस्थिति में हुआ अभिषेक ओर पूजन, गूगल मीटिंग के जरिए आनलाइन प्रसारित किया कार्यक्रम 


लोकमतचक्र.कॉम।

हरदा :  जैन धर्म के सोलवें तीर्थंकर भगवान श्री 1008 शांतिनाथ स्वामी के आज एक साथ तीन कल्याणक जन्म, तप एवं मोक्ष कल्याणक होने पर जैन धर्मावलंबियों ने उल्लास पूर्वक मंदिरजी में शांतिधारा अभिषेक एवं पूजन कर मनाया कल्याणक महोत्सव। कोरोना गाइडलाइन के चलते मंदिर की वेदियो पर जहां दो दो सदस्यों ने अभिषेक एवं पूजन पाठ कर विश्व शांति और कोरोना वायरस से मुक्ति की कामना करते हुए 108  कलशों से शांति धारा की गई, वहीं गूगल मिटिंग का उपयोग कर समाज के सभी सदस्यों को घर बैठे कार्यक्रम देखने का सौभाग्य मिला।

उक्त जानकारी देते हुए हरदा जैन समाज के अध्यक्ष सुरेन्द्र जैन एवं ट्रस्टी राजीव रविन्द्र जैन ने बताया कि आज जैन धर्म के सोलवें तीर्थंकर श्री शांतिनाथ स्वामी का जन्म, तप ओर मोक्ष कल्याणक था। भगवान शांतिनाथ स्वामी का कल्याणक कोविड गाइडलाइन का पालन करते हुए मनाया गया। इस दौरान प्रातः काल मंदिर जी में 7:00 बजे से नर्मदा नदी भूगर्भ से प्राप्त अतिशयकारी श्री 1008 शांतिनाथ भगवान जो कि हरदा दिगंबर जैन मंदिर में मूलनायक भगवान के रूप में विराजित हैं का स्वर्ण एवं रजत कलशों से अभिषेक किया गया। इसके साथ ही 64 रिद्धि सिद्धि मंत्रों के साथ अभिषेक दो - दो सदस्यों के द्वारा जलधारा देकर कोरोना वायरस से मुक्ति की प्रार्थना करते हुए पूजन विधान किया और निर्वाण लाडू चढ़ाया गया। वर्तमान में कोरोना संकट व्याप्त है और शासन के निर्देश भी धार्मिक या फिर किसी भी आयोजनों को भीड़भाड़ के रूप में करने की नहीं है इसलिए समाज के युवा आकाश लहरी द्वारा मंदिर जी में हुए समस्त कार्यक्रमों को गूगल मीटिंग के जरिए ऑनलाइन समाज के सभी सदस्यों को मोबाइल पर प्रसारित किया गया था। 

श्री जैन ने बताया कि अभिषेक, निर्वाण लाडू के पश्चात श्री जी का पालना झुलाया गया । संध्या काल में मंदिर में आरती और णमोकार मंत्र का पाठ आयोजन किया गया। समाज के कोषाध्यक्ष संजय बजाज ने बताया कि प्रथम शांतिधारा का सौभाग्य रितेश, राहुल, रूपेश गंगवाल परिवार को ओर द्वितीय शांतिधारा का सौभाग्य अभिषेक अजीत रपरिया परिवार को प्राप्त हुआ। प्रथम पालना झुलाने का सौभाग्य स्मिता अमीत चांदीवाल, जलगांव परिवार को प्राप्त हुआ।

उल्लेखनीय है कि जैन धर्म के सोलहवें तीर्थंकर शांतिनाथ का जन्म ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी के दिन शुभ नक्षत्रों के योग में हुआ था। उनके पिता का नाम विश्वसेन था, जो हस्तिनापुर के राजा थे। उनकी माता का नाम महारानी ऐरा था। बचपन में ही शिशु शांतिनाथ कामदेव के समान सुंदर थे। कहा जाता है उनका मनोहारी रूप देखने के लिए देवराज इन्द्र-इन्द्राणी सहित उपस्थित हुए थे। शांतिनाथ के शरीर की आभा स्वर्ण के समान दिखाई देती थी। उनके शरीर पर सूर्य, चन्द्र, ध्वजा, शंख, चक्र और तोरण के शुभ मंगल चिह्न अंकित थे। जन्म से ही उनकी जिह्वा पर मां सरस्वती देवी विराजमान थीं।

जब शांतिनाथ युवावस्‍था में पहुंचे तो राजा विश्वसेन ने उनका विवाह कराया एवं स्वयं राजा ने मुनि-दीक्षा ले ली। राजा बने शांतिनाथ के शरीर पर जन्म से ही शुभ चिह्न थे। उनके प्रताप से वे शीघ्र ही चक्रवर्ती राजा बन गए। उनकी 96 हजार रानियां थीं। उनके पास 84 लाख हाथी, 360 रसोइए, 84 करोड़ सैनिक, 28 हजार वन, 18 हजार मंडलिक राज्य, 360 राजवैद्य, 32 हजार अंगरक्षक देव, 32 चमर ढोलने वाले, 32 हजार मुकुटबंध राजा, 32 हजार सेवक देव, 16 हजार खेत, 56 हजार अंतर्दीप, 4 हजार मठ, 32 हजार देश, 96 करोड़ ग्राम, 1 करोड़ हंडे, 3 करोड़ गायें, 3 करोड़ 50 लाख बंधु-बांधव, 10 प्रकार के दिव्य भोग, 9 निधियां और 24 रत् न, 3 करोड़ थालियां आदि अकूत संपदा थीं। इस अकूत संपदा के स्वामी रहे राजा शांतिनाथ ने सैकड़ों वर्षों तक पूरी पृथ्वी पर न्यायपूर्वक शासन किया। तभी एक दिन वे दर्पण में अपना मुख देख रहे थे तभी उनकी किशोरावस्था का एक और मुख दर्पण में दिखाई पड़ने लगा, मानो वह उन्हें कुछ संकेत कर रहा था।

उस संकेत देख वे समझ गए कि वे पहले किशोर थे फिर युवा हुए और अब प्रौढ़। इसी प्रकार सारा जीवन बीत जाएगा। लेकिन उन्हें इस जीवन-मरण के चक्र से छुटकारा पाना है। यही उनके जीवन का उद्देश्य भी है। ...और उसी पल उन्होंने अपने पुत्र नारायण का राज्याभिषेक किया और स्वयं दीक्षा लेकर दिगंबर मुनि का वेश धारण कर लिया। मुनि बनने के बाद लगातार सोलह वर्षों तक विभिन्न वनों में रहकर घोर तप करने के पश्चात अंतत: पौष शुक्ल दशमी को उन्हें केवल्यज्ञान की प्राप्ति हुई और वे तीर्थंकर कहलाएं। तदंतर उन्होंने घूम-घूमकर लोक-कल्याण किया, उपदेश दिए। ज्येष्ठ कृष्ण चतुर्दशी के दिन सम्मेदशिखरजी पर भगवान शांतिनाथ को निर्वाण प्राप्त हुआ। जैन धर्म के पुराणों के अनुसार उनकी आयु एक लाख वर्ष कही गई हैं।

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