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जैन समाज ने दर्ज करवाई आपत्ति, भारत सरकार के जिंदा पशु पक्षियों के निर्यात विधेयक पर

जैन समाज ने दर्ज करवाई आपत्ति, भारत सरकार के जिंदा पशु पक्षियों के निर्यात विधेयक पर

लोकमतचक्र डॉट कॉम। 

हरदा। श्री दिगम्बर जैन समाज ने केन्द्र सरकार के प्रस्तावित विधेयक पशुधन आयात और निर्यात 2023 का विरोध दर्ज करवाते हुए अपनी आपत्ति संयुक्त सचिव भारत सरकार को प्रेषित की है । उक्त जानकारी देते हुए जैन समाज के अध्यक्ष सुरेन्द्र जैन एवं कोषाध्यक्ष राजीव जैन ने बताया कि भारत सरकार द्वारा ज्ञापन दिनांक 07.06.2023  के द्वारा प्रसारित सूचना अनुसार पशुधन आयात और निर्यात विधेयक, 2023 लागू किये जाने का समाचार प्राप्त हुआ है । चूंकि हम पशु प्रेमी, भारत की अहिंसात्मक संस्कृति का अनुयायी होने और राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध, नानक, गांधी की जीव मात्र के प्रति दया, करूणा के भावों का प्रबल समर्थक हूँ। आपके विभाग की और से जीवित पशुओं का निर्यात करने के विचार और प्रस्ताव पर हमें घोर और पुरज़ोर आपत्ति है। 

निम्न बिंदुओं पर दर्ज करवाई आपत्ति

1. प्रस्तावित बिल हिंसा का पोषक पर आधारित है। यह जीवित मवेशियों और जानवरों को कमोडिटी के रूप में परिभाषित करता है। उसकी मंशा लाइव स्टॉक एक्सपोर्ट करने के लिए कानूनी/ वैधानिक स्वरूप प्रदान करने की है। 

२. जिंदा पशु-पक्षियों एवं   मवेशियों को, हेरा-फेरी कर, उनके निर्यात को बढ़ाने, प्रोत्साहित करने पर आधारित है। जो संविधान के प्रावधानों एवं भावना के खिलाफ है। 

३. भारत के इतिहास में हिंसा पर आधारित जीवित पशुओं और प्राणियों का निर्यात व्यापार कभी भी नहीं किया गया है। 

४. वर्तमान में पूरी दुनिया में पशु प्रेमी संगठनों के द्वारा भी जीवित पशुओं और प्राणियों के निर्यात नीति  की तीव्र आलोचना की जा रही है। सभी जीवित प्राणियों और पशुओं के का किसी प्रकार से निर्यात का विरोध करने की मांग की जा रही है। 

५. प्रस्तावित विधेयक के पारित होने और लागू हो जाने से राष्ट्रीय पशु सम्पदा के अस्तित्व पर ही संकट आने की संभावना हो जावेगी। 

६.  भारत से बड़े पैमाने पर मांस, चमड़ा और मछलियों आदि के निर्यात के कारण जलवायु और वातावरण काप्रदूषण का ख़तरा बढ़ता जा रहा है। प्राकृतिक प्रकोपों और विभिन्न प्रकार की बीमारियों में वृद्धि और वायु- जल दूषित हो रहे हैं। 

७. समाज में हिंसक प्रवृत्ति पनप रही है। 

८. शासन की ढुलमुलता के कारण पशु-पक्षी ही नहीं मछली, जलीय जीव जंतु, चमड़ा आदि का निर्यात व्यापार पहले ही पनप चुका है।

९. आपकी वेबसाइट में प्रस्तुत जानकारी अनुसार आपके मंत्रालय/ विभाग का क्षेत्राधिकार केवल पशुओं के आयात से संबंधित मामलों तक ही सीमित है।निर्यात मामला डीजीएफटी, वाणिज्य मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में आता है। उपरोक्त प्रस्तावित प्रस्ताव में प्रस्तुत निर्यात व्यवस्था आपके मंत्रालय के कार्य क्षेत्र में नहीं होने से यह तथाकथित प्रस्ताव/विधेयक की वैधानिकता अव्यावहारिक और असंगत है। इसको न्यायालय में चुनौती दी जाना संभव है। 

१०. देश के सभी नागरिकों तक सरकार की जीवित प्राणियों के निर्यात की इस प्रस्तावित नीति की जानकारी पर्याप्त समय देने के साथ सभी प्रचार माध्यमों से प्रचारित की जाना चाहिए था। इसके साथ ही  सामान्यतः कम से कम 60 दिनों का समय तो दिया जाना आवश्यक था।

११. मात्र दस दिन की समयावधि बिना जन सामान्य तक जानकारी प्रचारित और प्रसारित करने की प्रक्रिया अपनाना अव्यावहारिक है। 

१२. नागरिकों के जानने और आपत्ति प्रस्तुत करने के सामान्य अधिकार का हनन है। 

प्रेषित ज्ञापन में कहा गया है कि उपरोक्त आपत्तियों के आधार पर आपसे अनुरोध है कि प्रस्तावित प्रस्ताव को तुरंत निरस्त किया जाय और इस संबंध में लिए गए निर्णय से जन सामान्य को सभी प्रचार-प्रसार माध्यमों के द्वारा अवगत कराया जाय। आपसे आग्रह है कि इस संबंध में प्रस्तुत आपत्तियों पर विचार करते हुए लिए जाने वाले निर्णय से अवगत कर अनुग्रहित करें।

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