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प्रवेश ने व्यक्ति नहीं व्यवस्था पर पेशाब किया...

प्रवेश ने व्यक्ति नहीं व्यवस्था पर पेशाब किया...

वरिष्ठ पत्रकार सुधीर निगम का विशेष लेख


लोकमतचक्र डॉट कॉम। 

आपको याद होगा कि कुछ दिन पहले हवाई जहाज में एक व्यक्ति ने एक महिला के ऊपर पेशाब कर दिया था। क्या वो पढ़ा-लिखा और उच्च वर्ग का नहीं था? तो इसे किसी भी चश्मे से देखने के पहले सोचियेगा। ये किसी वर्ग की बात नहीं है, ये घटना मानसिकता और सड़ी व्यवस्था की प्रतीक है।

भोपाल । सीधी जिले में प्रवेश शुक्ला नामक व्यक्ति ने एक विक्षिप्त व्यक्ति पर पेशाब कर दिया। वीडियो वायरल होने पर सरकार अपनी खानापूर्ति में जुटी है। प्रवेश को गिरफ्तार कर लिया, एनएसए लगा दिया और अब तो बुलडोजर भी चल गया। लेकिन, क्या ये एकमात्र घटना है, जी नहीं, ऐसी घटनाएं होती रही हैं और हम नहीं सुधरे तो होती रहेंगी। प्रवेश ने किसी व्यक्ति नहीं इस पूरी व्यवस्था पर पेशाब किया है। दूसरे लोग पेशाब नहीं करते, लेकिन उनके कृत्य भी पेशाब से कम नहीं हैं।

इस घटना को जाति के चश्मे से देखने वाले ज्यादा हैं। परंतु क्या यह सिर्फ जाति आधारित घटना है? बिलकुल नहीं। इसे हमें सत्ता के दम्भ और उससे पीड़ित के नजरिए से देखना चाहिए। ये घटना बताती है कि जो खुद को शक्तिशाली मानता है, वो कमजोर पर कोई भी अत्याचार कर सकता है। इसमें जाति मायने नहीं रखती। राजनीतिक दलों को बैठे ठाले अच्छा खासा मुद्दा मिल गया। कांग्रेस आदिवासियों की हितैषी बन गई और भाजपा डिफेंसिव मोड में है। इस घिनौने काम को पीछे छोड़, सब जाति-जाति खेल रहे हैं।

किसी घटना की भयावहता के बजाय उसमे जातिवादी एंगल ज्यादा घुसेड़ा जा रहा है। मीडिया को तो खैर आदत है। हर खबर में आजकल वैसे ही धर्म और जाति को ढूंढा जा रहा है, तो ये घटना कैसे उसका अपवाद हो सकती है? सो सब लगे हैं, उसी दिशा में। अगर प्रवेश भाजपा नेता नहीं होता, तब भी इस कृत्य की अमानवीयता कम नहीं होती। ये घटना बताती है कि आजादी के 75 साल बाद भी हम सभ्य समाज नहीं बना पाए। सिर्फ निम्न वर्ग, मध्यम वर्ग या उच्च वर्ग में बांटकर इस घटना को नहीं देखना चाहिए। आपको याद होगा कि कुछ दिन पहले हवाई जहाज में एक व्यक्ति ने एक महिला के ऊपर पेशाब कर दिया था। क्या वो पढ़ा-लिखा और उच्च वर्ग का नहीं था? तो इसे किसी भी चश्मे से देखने के पहले सोचियेगा। ये किसी वर्ग की बात नहीं है, ये घटना मानसिकता और सड़ी व्यवस्था की प्रतीक है।

ऐसी घटनाओं को लोग थोड़े समय बाद भूल जाते हैं। यही व्यवस्था तो हमने बनाई है। जब तक व्यवस्था पर चोट नहीं होगी, तब तक ऐसी घटनाएं होती रहेंगी। ये सिर्फ एक घटना नहीं है, हर रोज ऐसी या इससे मिलती-जुलती घटनाएं होती हैं, लेकिन वो सामने नहीं आतीं। जो सामने आती हैं, उस पर कार्रवाई कर हम वाहवाही लूटने की कोशिश करते हैं। लेकिन, ऐसी कार्रवाई की जरूरत ही क्यों पड़े? जनाब ऐसी व्यवस्था बनाइये कि ऐसी घटनाएं न हों और हमें वाहवाही लूटने की कोशिश भी न करना पड़े।

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