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ईश्वर की भक्ति से मिलती है मुक्ति, नही जाना पड़ता गया - पं प्रभु नागर

ईश्वर की भक्ति से मिलती है मुक्ति, नही जाना पड़ता गया - पं प्रभु नागर


लोकमतचक्र.कॉम।

मसनगांव (अनिल दिपावरे) - ग्राम की इंदिरा आवास कॉलोनी के पास आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के दूसरे दिन कथावाचक पंडित प्रभु जी नागर ने बताया कि ईश्वर की भक्ति से मुक्ति मिल जाती है । जो व्यक्ति ईश्वर की भक्ति करता है उसके पुत्रों को गया जाने की जरूरत नहीं पड़ती। आध्यात्मिक ध्यान लौकिक जीवन जीने के लिए बहुत बड़ा माध्यम है। इस संबंध में उन्होंने महाभारत के प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि भगवान कृष्ण को सबसे अधिक प्रिय भीम थे क्योंकि द्रौपदी के चीरहरण के समय भीम ने हीं युधिष्ठिर का विरोध किया था और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई थी। इस बात को समझाते हुए बतलाया की यदि कोई अपना रोकने का प्रयास करें या परामर्श दे तो उसकी बात पर ध्यान देना चाहिए और उसे बार-बार धन्यवाद देना चाहिए, क्योंकि एक समय जब लोहा और सोना आपस में मिले तो सोना रोते हुए लोहे से बोला कि तुमको भी पिटा जाता है मुझे भी पिटा जाते है लेकिन तुम्हें अपने लोहे से पीटा और मुझे लोहे की हथौडी ने पीटा जब कोई अपना पिटता है तो उतना दुख नही होता। इसलिए कोई अपना यदि डांटता भी है तो उसकी बात का बुरा नहीं माना जाता क्योंकि अपने तो अपने होते हैं उसकी प्रेम और प्रताड़ना दोनों ही प्रेम के समान है।

कथा वही होती है जो सहज में समझ आ जाए इसलिए कथा को इस प्रकार बतलाया जाये की हर व्यक्ति को सहज मे समझ जाये यही प्रयास होना चाहिए। भगवान शंकर की कथा का वर्णन करते हुए बताया कि माता सती ने भगवान शंकर की बात नहीं सुनी और वे दक्ष प्रजापति के यज्ञ में पहुंच गई जिसके कारण उन्हें अपने यक्ष मे कुदना पड़ा। जो लोग भगवान की कथा को पीठ दिखाते है वे कभी सुखी नही रहते भागवत कथा भगवान के नाम की समाधि होती है। जीते जी जिसने भजन कर लिया उसके जीवन का उद्धार हो जाता है , उसको गया जाने की जरूरत नहीं पड़ती ।


माता भक्ति के बारे में बतलाते हुए नागर जी ने बताया कि भारत की भूमि पर ऐसे ऐसे भक्त हुए हैं जिनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान को बच्चों का रूप धारण करना पड़ा माता । अनसुईया की कथा सुनाते हुए कहा कि तीनो ही  भगवान को माता अनुसुईया ने बालक बनाकर पाला तो देवकी जैसी माता ने अपने उदर में भगवान को रखा । व्यक्ति अपने संकल्प शक्ति से भगवान को गोद में बिठा सकता है भक्ति की पराकाष्ठा और महिमा ऐसी है कि भगवान को भक्त अपने बस में कर लेता है। दुसरे दिन की कथा मे बड़ी संख्या में श्रद्धालु भागवत कथा का लाभ लेने पहुंचे।

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