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दो संतो का हुआ सिद्धोदय सिद्ध क्षेत्र में ऐतिहासिक मिलन

दो संतो का हुआ सिद्धोदय सिद्ध क्षेत्र में ऐतिहासिक मिलन

अपार जनसमुदाय बना मिलन का साक्षी, दो किलोमीटर से अधिक लम्बी शोभायात्रा आकर्षण का रही केन्द्र


हरदा/नेमावर
- एक हजार किलोमीटर से पद गमन करते हुए कर्नाटक के कृष्णा नदी के तट भद्रागिरी से मध्यप्रदेश की नर्मदा नदी के नाभि स्थल तट पर आकार ले रहे दिगम्बर जैन समाज के तीर्थ सिद्धोदय सिद्ध क्षेत्र की पावन धरा पर आज दिगम्बर जैन समाज के दो संतो का ऐतिहासिक मिलन भव्य शोभायात्रा ओर अद्भुत गणितीय योग में संपन्न हुआ। जिसके साक्षी बने कर्नाटक, महाराष्ट्र ओर मध्यप्रदेश के विभिन्न अंचलों से आये हजारों जैन धर्मावलंबी।

उक्त जानकारी देते हुए हरदा जैन समाज के ट्रस्टी राजीव रविन्द्र जैन पटवारी ने बताया कि नर्मदा नदी के तट पर स्थित हरदा जिले के हंडिया से एक भव्य शोभायात्रा जैन श्रद्धालुओं द्वारा निकाली गई जिसमें दो जैन संतो के अद्भुत मिलन की पटकथा साकार हुई। हंडिया नगर के लेगा मैरिज गार्डन से प्रातः 6:30 बजे जैन श्रद्धालु के द्वारा 108 कलशो के साथ मुनि परंपरा के महत्वपूर्ण संयम उपकरण 108 पिच्छीका और 108 कमंडल के साथ जैन धर्म चर्या को वर्तमान में साकार रूप प्रदान करने वाले महान जैन संत आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज की 108 प्रतिमाओं के साथ विभिन्न प्रकार के वाद्य यंत्रों जिसमें महिलाओं के द्वारा लेझिम वाद्य यंत्र तथा युवतियों और युवाओं के दिव्य घोष की प्रस्तुति के साथ आचार्य गुरुओं के जयकारा लगाते हुए शोभायात्रा निकाली गई। शोभायात्रा में क्रमबद्ध रूप से चल रहे जैन श्रृद्धालुओं द्वारा कन्नड़ भाषा में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के दक्षिण की तरफ प्रवास को लेकर धर्म ध्वजा धारण करते हुए जाप अनुष्ठान किया गया।


सिद्धोदय सिद्ध क्षेत्र नेमावर में आचार्य संतो के मंगल मिलन के अद्भुत क्षणों में श्रृद्धालुओं ने जयकारों से आकाश गुंजायमान कर दिया। इस अवसर पर भारत के दक्षिण दिशा की ओर प्रवास को लेकर श्रृद्धालुओं द्वारा की गई अनुमोदना पर आचार्य श्री विद्यासागर जी ने कहा कि नदी पहाड़ों से उतरती है तो आगे बड़ जाती है, फिर लौटकर नहीं आती। आचार्य श्री विद्यासागर ने आगे कहा की जो नदी में उतरा वो उसमें ही समाहित हो गया ओर तर गया। उन्होंने भारत को एक ही धरा बताते हुए कहा यहां क्या उत्तर, क्या दक्षिण यह सब भारत के ही अंग है। 

इस अवसर पर कर्नाटक से नेमावर पहुंचे आचार्य श्री कुल रत्न भूषण जी महाराज ने अपने उद्बोधन में इस मिलन को गुरू द्रोण ओर एकलव्य का मिलन बताते हुए कहा कि मैं तो एकलव्य हूँ मेरे गुरू द्रोण आचार्य श्री विद्यासागर  जी ही है। उन्होंने कहा कि मैंने आचार्य श्री विद्यासागर को गुरू मानकर उनकी परम्परा को दक्षिण में आगे बड़ाया है।


गौरतलब है कि आचार्य श्री कुल रत्न भूषण महाराज कर्नाटक के भद्रागिरी से एक हजार किलोमीटर की पैदल यात्रा 36 दिनों में करके गुरू वंदना से तीर्थवंदना का उद्देश्य लेकर सिद्धोदय सिद्ध क्षेत्र नेमावर पर आज प्रातः काल में पहुंचे। उनके साथ हजारों की तादाद में कर्नाटक, महाराष्ट्र के यात्री 38 बसों, 60 चौपहिया वाहनों से पहुंचे ओर आचार्य श्री विद्यासागर जी का दर्शन वंदन किया। इस अवसर पर सिद्धोदय सिद्ध क्षेत्र के कार्यकारी अध्यक्ष इंजीनियर संजय मैक्स, उपाध्यक्ष सुरेश काला, कोषाध्यक्ष महेन्द्र अजमेरा, निर्माण समिति के राजीव कठनेरा, जिनेश काला, पवन काला द्वारा आचार्य श्री कुल रत्न भूषण जी की अगवानी करने के साथ ही श्रृद्धालुओं का कमेटी की ओर से सम्मान किया।

हरदा जैन समाज के अध्यक्ष सुरेंद्र जैन ने बताया कि बाहर से आए हुए यात्रियों की व्यवस्था नगर की विभिन्न धर्मशाला में की गई थी । आधे यात्रियों को नेमावर और खातेगांव मैं धर्मशाला में भी रुकवाया गया था। उन्होंने बताया कि यात्रियों की व्यवस्थाओं में हरदा जैन समाज के युवा संजय पाटनी, राजीव जैन, आलोक बड़जात्या, राहुल गंगवाल, रितेश गंगवाल, हितेंद्र अजमेरा, संजय बजाज, आकाश लहरी एवं अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा पूरी जिम्मेदारी के साथ की गई। नेमावर क्षेत्र में यात्रियों की आवास व्यवस्था का दायित्व हितेश बड़जात्या, जम्बू सेठी, सुशील काला एवं अन्य सामाजिक बंधुओं द्वारा निभाया गया। बाहर से आए समस्त यात्रियों और श्रद्धालुओं के लिए उत्तम भोजन की व्यवस्था विशेष रुप से सिद्धोदय सिद्ध क्षेत्र नेमावर पर गजेंद्र सेठी, ललित कासलीवाल, शरद अजमेरा राजीव कठनेरा सहित भोजन समिति जुड़े समाज जनों द्वारा की गई। क्षेत्र की जैन समाज द्वारा यात्रियों के लिए की गई इस उत्तम व्यवस्था पर यात्रियों द्वारा हर्ष व्यक्त करते हुए सिद्धोदय क्षेत्र कमेटी ओर हरदा, खातेगांव जैन समाज का आभार व्यक्त किया।

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