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राष्ट्र का यौवन और स्वाधीनता पर्व . . .

राष्ट्र का यौवन और स्वाधीनता पर्व . . .

◆ डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' (पत्रकार एवं स्तंभकार) इंदौर, मध्यप्रदेश

लोकमतचक्र.कॉम।

दुश्मनों की तमाम चालों को विफ़ल करते हुए मंगल पांडे और खुदीराम बोस से लेकर भगत, आज़ाद, राजगुरु, सुभाष, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, तिलक, महात्मा गाँधी, सरदार पटेल आदि से लेकर स्वतंत्रता संग्राम के साक्षी कोटिशः भारतीयों के अमर बलिदान और निःस्वार्थ राष्ट्रयज्ञ की आहुतियों के प्रबल पुण्य प्रताप से भारत के स्वाभिमान की अक्षुण्ण स्थापना का स्वप्न अगस्त माह की चौदह तारीख़ की मध्यरात्रि में पूर्ण हो पाया है और पंद्रह तारीख़ की सुबह भारत ने आज़ाद सुबह का सूरज देखा। निश्चित तौर पर उस क्षण का ध्यान मात्र भी रोमांच को अगणित गुना करके प्रत्येक भारतवंशी को रोमांचित कर देता है। आज भारत की स्वाधीनता अपने यौवन में पदार्पण करते हुए पचहत्तर वर्षीय अमृत महोत्सव मना रही है। इस स्वाधीनता संग्राम के साक्षी समय ने भी हरकारे की भूमिका का निर्वहन कर राष्ट्र देव की आराधना करते हुए यौवन में प्रवेश किया है।

बीते पचहत्तर वर्षों में भी राष्ट्रवासियों ने परम वैभव की स्थापना के लिए सैंकड़ो संघर्ष किए हैं और आज भी कई संघर्ष जारी हैं, जैसे अंग्रेज़ी क़ानून से छुटकारा, अंग्रेज़ियत और अंग्रेज़ी संस्कृति से मुक्ति के लिए संघर्ष, हिन्दी भाषा की राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापना, ग़रीबी, अशिक्षा और अनाचार से मुक्ति के लिए संघर्ष, भ्रष्टाचार, पथभ्रष्टता और मातृशक्ति के वाचिक बलात्कार से मुक्ति यानी माँ-बहनों की गालियों से मुक्ति कर सभ्य भारत के निर्माण के लिए संघर्ष, सशक्त और स्वस्थ भारत का नवनिर्माण, आर्थिक रूप से समृद्ध भारत की स्थापना और ऐसे बीसियों संघर्ष वर्तमान में भी लगातार जारी हैं, जिनका उद्देश्य राष्ट्र के यौवन की प्रबल ऊर्जा को प्रारब्ध के पुण्योदय से उत्कर्ष के शिखर तक पहुँचाना है।

पूर्व प्रधानमंत्री, भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी लिखते हैं कि 'भारत एक भूमि का टुकड़ा नहीं बल्कि जीता जागता राष्ट्रपुरुष है', इससे परिलक्षित होता है कि राष्ट्र एक जनसमूह का शोर नहीं बल्कि जनमानस की भावनाओं और संवेदनाओं के कंधे पर संवार जागरण की ऊर्जा का स्त्रोत है।

राष्ट्र अपने यौवन में प्रवेश तो कर रहा है किंतु अब राष्ट्रवासियों को भी अपने कर्त्तव्यों को ध्यान में रखकर कार्य करना होगा। आज़ादी केवल हक़ ही नहीं बल्कि ज़िम्मेदारी भी है। आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहे भारतीयों की कर्त्तव्यनिष्ठा और प्रतिबद्धता की परीक्षा की घड़ी भी है।

हमने कई युद्ध, महामारी, कोरोना, आपातकाल, आर्थिक आपातकाल, सीमा पर तनाव भी देखे हैं तो गृह युद्ध का त्रास भी झेला है। किन्तु अब समय, समझदारी से राष्ट्रयज्ञ करने का है। भारत के नागरिक बेहद संजीदा और ज़िम्मेदार हैं। हम अपनी कर्त्तव्यनिष्ठा का महोत्सव भी मनाना जानते हैं तो जागरुकता और ज़िम्मेदारी का टीका लगवाने से भी नहीं चूकते। इसीलिए यह राष्ट्र अन्य राष्ट्रों की तुलना में शीघ्रता से प्रगतिपथ पर अग्रसर है। आज राष्ट्रवन्दना के त्यौहार पर हम सभी संकल्प लें कि सदैव हक़ माँगने के साथ-साथ अपनी ज़िम्मेदारियों का निर्वहन भी करेंगे तभी राष्ट्र उन्नति के उत्तुंग शिखर पर सफलता का जयघोष कर सकेगा।



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