Breaking News

18 साल बाद किए श्रद्धागुरु के दर्शन किए तो निकल पड़े आंसू

18 साल बाद किए श्रद्धागुरु के दर्शन किए तो निकल पड़े आंसू

• अभूतपूर्व क्षण को देखने दक्षिण भारत के 3 हजार से ज्यादा श्रद्धालु नेमावर पहुंचे

• 1008 किमी का पदविहार, 36 दिनों में पूरा किया आचार्य कुलरत्न भूषण जी ने


नेमावर/हरदा
 - शनिवार को लगभग 18 साल के बाद आचार्य कुलरत्न भूषण जी ने अपने श्रद्धागुरु आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज के दर्शन कर चरण छुए तो उनकी भावनाएं आंसुओं के रूप में झलक आयीं। इस अभूतपूर्व क्षण को देखने के लिए 40 बसों और 60 से ज्यादा चार पहिया वाहनों से दक्षिण भारत के 3 हजार से ज्यादा श्रद्धालु भी नेमावर पहुंचे। 

जानकारी देते हुए जैन समाज के प्रवक्ता नरेंद्र चौधरी एवं पुनीत जैन ने बताया आचार्य कुलरत्न भूषण जी ने कन्नड़ भाषा में कहा कि दिगम्बर मुनि परम्परा में 20 वीं सदी आचार्य शांतिसागरजी के नाम रही और 21 वीं सदी आचार्यश्री विद्यासागरजी के नाम से जानी जाएगी। हम में से किसी ने भगवान को साक्षात नहीं देखा लेकिन आचार्यश्री वर्तमान के वर्धमान हैं। आपकी चर्या शास्त्रों में वर्णित तीर्थकरों की चर्या से कमतर नहीं है। उन्होनें आचार्यश्री से निवेदन करते हुए कहा कि दक्षिण भारत में जन्म लेने के बावजूद पिछले 55 वर्षों से आपने दक्षिण की ओर रुख नहीं किया। मध्यप्रदेश और राजस्थान में आपका अधिकतम समय बीता, अब दक्षिण के लोगों का पुण्य जगाने आप दक्षिण भारत की ओर विहार करें। दक्षिण भारत में हजारों-लाखों श्रद्धालु पलक पांवड़े बिछाकर आपका बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। जैसे गहरी श्रद्धा के कारण ही शबरी को भगवान राम के दर्शन हुए उसी तरह आज मुझे भी 18 साल बाद अपने श्रद्धागुरु के दर्शन करने का सौभाग्य मिला। यह क्षण मेरे जीवन के लिए अभूतपूर्व हैं। इस पूरी यात्रा को गुरुवंदना से तीर्थवन्दना नाम दिया गया। जैन परम्परा में मुनियों के द्वारा सूर्य मंत्र देने के बाद ही मूर्ति को भगवान के रूप में पूजा जाता है। इसलिए गुरुओं का स्थान भगवान से भी ऊपर है। गुरुवंदना करने से तीर्थों की वंदना करने से ज्यादा पुण्य मिलता है।

जैन समाज हरदा के ट्रस्टी राजीव जैन पटवारी एवं सक्रिय युवा आलोक जैन ने बताया -

आचार्यश्री विद्यासागर जी ने भी अपने प्रवचन में अधिकांश कन्नड़ भाषा का उपयोग करते हुए कहा हमें दिशा की ओर नहीं वरन दशा की ओर ध्यान देना चाहिए। दशा बदलने से दिशाएं अपने आप बदल जाती हैं। जैसे सभी प्रमुख नदियां पश्चिम से पूर्व की ओर बहती है लेकिन नर्मदा पूर्व से पश्चिम की ओर। लेकिन अंत में उसका मिलना भी सागर से ही होता है। उसी प्रकार हमें सिर्फ और सिर्फ मोक्ष मार्ग को ध्यान में रखकर ही आगे बढ़ते रहना चाहिए। जब व्यवस्थापक स्वयं व्यवस्थाओं का अनुसरण करने लगे तो आमजन भी उसका उसी तरह अनुसरण करने लगते हैं और व्यवस्थाएं अपने आप बन जाती हैं। 

पूरी यात्रा के प्रभारी महावीर अष्ठगे, चंद्राकांत भोजपाटिल, बाहुबली एन मुत्तीन, सतीश वी हजारे, राजीव देसाई, राजीव नाड़गोड़ा ने कुंडलपुर के बड़े बाबा और आचार्य ज्ञानसागरजी के चित्र का अनावरण किया। 

---

आचार्य कुलरत्न भूषण जी ने 19 दिसम्बर को कर्नाटक के भद्रगिरि तीर्थ से पदयात्रा शुरू की, 36 दिन में 1008 किमी की दूरी तय कर 23 जनवरी को नेमावर पहुंचे। जैनाचार्यों के 36 मूलगुण होते हैं, उसी को ध्यान रख पदयात्रा शुरू करने से पूर्व ही उन्होंनें प्रण किया कि यह यात्रा 36 दिनों में ही पूरी करेंगे।

शनिवार सुबह आचार्य कुलरत्न भूषण जी के नेमावर प्रवेश के दौरान दक्षिण भारत से आए 3 हजार से ज्यादा श्रद्धालु भी साथ थे। सभी श्वेत वस्त्रों में अनुशासन के साथ चल रहे थे। लेजिम, दिव्य घोष, महिलाएं सिर पर कलश, पुरुष वर्ग धर्मध्वज लिए थे। यात्रा का एक क्षोर नेमावर में तो दूसरा हंडिया में था। सभी ने भक्ति भाव से आचार्यश्री की पूजन की। दक्षिण से आए श्रद्धालु अपने साथ 108 पीच्छी, 108 कमंडल और आचार्य शांतिसागरजी की 108 प्रतिकृति भी लाए थे।

----

सिद्धोदय सिद्ध क्षेत्र के कार्यकारी अध्यक्ष इंजीनियर संजय मैक्स, उपाध्यक्ष सुरेश काला, कोषाध्यक्ष महेन्द्र अजमेरा, निर्माण समिति के राजीव कठनेरा, जिनेश काला द्वारा आचार्य श्री कुल रत्न भूषण जी की अगवानी करने के साथ ही श्रृद्धालुओं का कमेटी की ओर से सम्मान किया। यात्रियों की भोजन व्यवस्था विशेष रूप से गजेंद्र सेठी, शरद अजमेरा एवं ललित कासलीवाल द्वारा संभाली गई। सभी यात्रियों के आवास व्यवस्था संजय पाटनी, राजीव रविन्द्र जैन, आलोक बड़जात्या, जम्बू सेठी, हितेश बड़जात्या, संजय बजाज, राहुल गंगवाल आदि के द्वारा की गई।

कोई टिप्पणी नहीं