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आजीविका मिशन से आत्मनिर्भर हो रहीं राजाबरारी की आदिवासी महिलाएं

आजीविका मिशन से आत्मनिर्भर हो रहीं राजाबरारी की आदिवासी महिलाएं

61 शासकीय स्कूलों साढ़े 9 हजार यूनिफार्म बनाने का मिला आर्डर, 28 लाख का मिला है आर्डर, 10 लाख रुपए की बचत होने की संभावना


हरदा।
हाल ही में राजाबरारी एस्टेट में चल रहे पांच स्व सहायता समूहों की महिलाओं को वनांचलों के 61 शासकीय स्कूलों के लिए साढ़े नौ हजार यूनिफार्म बनाने का आदेश पत्र प्राप्त हुआ है। आदेश की कुल राशि तकरीबन 28 लाख रुपये है जिसमे से लागत निकालने के बाद इन समूहों की महिलाओं को करीब 10 लाख रुपये तक की आमदनी  होने की उम्मीद है। कार्य 90 दिनों के अंदर समाप्त किया जाना है। आजीविका मिशन के टिमरनी ब्लॉक से संतोष वास्केल एवं जिला स्तर के राधेश्याम जाट के द्वारा इन समूहों का दौरा कर कपड़े की खरीदी, टेस्टिंग इत्यादि के कार्य को तेजी दी गयी और उनका मार्गदर्शन किया गया। जिससे महिलाओं ने बिना किसी बाधा के बड़े स्तर पर दैनिक उत्पादन शुरू कर दिया है। 

●  विशेषज्ञों की टीम करेगी गुणवत्ता की जांच

वहीं दयालबाग यूनिवर्सिटी के आत्मा कार्यक्रम से प्रशिक्षित इन महिलाओं की सिलाई की गुणवत्ता हेतु यूनिवर्सिटी के द्वारा पांच एक्सपर्टस की एक समिति बनाई गई है जो उच्च स्तर की गुणवत्ता सुनिश्चित कर रही है। 

● वीडियो कांफ्रेंसिंग से दिया जा रहा मार्गदर्शन

यूनिवर्सिटी से हेड ऑफ डिपार्टमेंट डॉ संगीता सैनी तथा राजाबरारी से ग्रामीण उद्यमिता की शोधकर्ता ए एस रागिनी के द्वारा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से महिलाओं का सतत मार्गदर्शन किया जा रहा है।

आजीविका मिशन की योजनाओं का दूरस्थ वनांचलों में भी बिना किसी अनियमितता के क्रियान्वयन आदिवासी महिलाओं के किये अति लाभदायक सिध्द हो रहा है।

3 टिप्‍पणियां:

  1. This is due to joint and focussed efforts of "ATMA" group of team. Team led by able leaders, who could convince district administration their abilities to deliver quality product. Best wishes to all team members.. Keep it up team "ATMA" Rajaborari!!

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  2. बहुत खूब, रज़ाबोरारी के आदिवासीयो को आत्मानिर्बाय बनाने का पूर्ण शर्य उंकी सच्ची लगन मेहनत समय से कर्व करनी की शामत को जाता है, वो दिन दूर नहीं जब वहाँ के दसो गाँव के आदिवासीयो आत्मानिर्बाय हो जैवगे । इस लगन से कार्य करना आत्मा, दयालबाग़ एजुकेशनल इन्स्टिटूट, दयालबाग़, अगर का छोटा सा कार्य है वहाँ कै आदिवासीयो को आत्मानिर्बायता की ओर। रज़ाबोरारी। मैं १९८२ मै रज़ाबोरारी पहेलि बार गई थी, जब मेरे पिताजी व माताजी, जिन्हें वहाँ के आदिवासी प्रेम से डाक्टर मक़बूल व डाक्टर बहिंजी पुकारते थे। वे दोनो भारत सरकार के ऊँच सरकारी पद्दो हेल्थ तथा एजेकेशन से कार्य रत होकर राधास्वामी दयाल की उप्पार दया व मेहर से रज़ाबोरारी आ कर बसे। पिताजी ने वहाँ पर हस्पताल बनाया, व माता जी ने वहाँ कि औरतों व बच्चों को सिलाईं व नाम लिखना सिखाया

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